कस्बा पाली स्थित भूत भगवान नीलकंठेश्वर मंदिर जिले के प्रमुख शिव मंदिरों में से अपना विशेष स्थान रखता है। करीब 13 सौ साल पुराना चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यूं तो साल भर यहां पर धार्मिक कार्यक्रमों की धूम बनी रहती है, लेकिन शिवरात्रि पर यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। यह मंदिर अपनी कोख में हजारों साल पुरानी संस्कृति और सभ्यता को छुपाए हुई है। कस्बा पाली आसपास का क्षेत्र पुरातत्व पर्यटन स्थलों की खान माना जाता रहा है। सीढ़ियों को चढ़कर इस मंदिर तक पहुंचा जाता है। सीढ़ियों के दोनों ओर झरना भी बहता है। हालांकि यह विहंगम दृश्य बरसात के मौसम में ही देखने को मिलता है।
यह हुआ था चमत्कार------मुगल शासन काल में जब औरंगजेब मंदिरों को तोड़ने का काम कर रहा था, औरंगजेब की सेना इस मंदिर को भी तोड़ने के लिए एवं भगवान की मूर्ति खंडित करने के लिए आई थी। औरंगजेब के सैनिक ने नीलकंठेश्वर की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार से प्रहार कर दिया था। इससे प्रतिमा को चोट लगने वाले स्थान से दूध की धारा बह निकली थी। यह चमत्कार देख मुगल सेना भोलेनाथ को मन ही मन प्रणाम कर वहां से चली गई थी।
झरने का पानी बना देता है निरोगी
यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस मंदिर के नीचे जो झरना साल भर रहता है। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात। झरने का पानी कभी नहीं सूखता। यह पानी कहां से आता है? इस बात की भी जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन इस पानी में इतना चमत्कार है कि जो भी इस पानी को लगातार सेवन करता है उसकी काया हमेशा निरोगी बनी रहती है उसे कोई रोग शोक बीमारी नहीं घेर सकती। पहाड़ों की कंदराओं से बहने वाला अद्वितीय औषधीय गुणों से युक्त इसका पानी यहां आने वाले लोगों को लोगों की सारी थकान हर लेता है।
शिव की त्रिमुखी प्रतिमा के नीचे है एक मुखी ज्योतिर्लिंग
मंदिर में काले पत्थर पर से भगवान की त्रिमुखी अद्भुत प्रतिमा के दर्शन होते हैं। इस प्रतिमा को नवमी दशमी सती में चंदेल कालीन राजाओं ने बनवाया था। इस से मंदिर में शिखर नहीं है। शिखर वहीं मंदिर का वास्तु शिल्प देखते ही बनता है। मंदिर में भगवान शिव की त्रिमुखी प्रतिमा के नीचे फर्श पर एक मुखी ज्योतिर्लिंग स्थापित है। शिव भक्त इसे भगवान भोलेनाथ के अर्ध नारीश्वर रूप मानते हैं। त्रिमुखी महेश प्रतिमा व एकमुखी ज्योतिर्लिंग को हिंदू धर्म शास्त्री व पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है।
मूर्ति की विशेषता--------प्रथमा के पृष्ठभाग पर कैलाश पर्वत को दर्शाया गया है। मयूर भगवान शिव डमरू बजाते व हलाहल पीते दर्शाया गई है। बीच में विराट स्वरूप सदाशिव निबंध मुद्रा में दाए हाथ में रुद्राक्ष की माला से जाप कर रहे कर रहे थे हैं और बाएं हाथ में श्रीफल लिए हैं। वाम भाग में मां पार्वती का श्रृंगार रस स्वरूप रूप है। जो अपने एक हाथ में त्रिशूल लिए हुए हैं। इस अद्भुत प्रतिमा के कुल 8 हाथ दर्शाये गये हैं। इनमें दंड हलाहल डमरू माला माला आईना बिंदी त्रिशूल और श्रीफल धारण किया हुआ है। यही वजह है कि आस्था के वशीभूत होकर श्रद्धालु यहां आते जाते रहते हैं। कहते है कि महा शिवरात्रि पर्व पर भोलेनाथ का अभिषेक व पूजन कराने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यहां हर वर्ष शिव रात्रि के दिन यहां पर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु भोले के दरबार में माथा टेक कर अपने सफल मंगल जीवन की कामना करते हैं।
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